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अभी कुछ ही दिनों पहले चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया DY चंद्रचूड़ ने कहा था की उन्हें इस बात की फ़िक्र रहती है की इतिहास उनके कार्यकाल को कैसे देखेगा, कैसे याद करेगा। दोस्तों, ये सवाल महत्वपूर्ण है। महत्वपूर्ण इस लिए है की एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय में चंद्रचूड़ चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया बने थे, और उनके फैसले आने वाले समय के लिए और भी महत्वपूर्ण होने वाले थे। जस्टिस रमन गोगोई जब CJI बने तो उन्होंने कुछ फैसले सरकार के पक्ष में सुनाये, रफायल डील पर उन्होंने बीजेपी सरकार को क्लीन चिट दे दिया था। इसके बाद CJI गोगोई को रिटायरमेंट के 4 महीने के अंदर ही राष्ट्रपति द्वारा नॉमिनेट करके राज्य सभा भेज दिया गया था। उसके बाद चीफ जस्टिस बने शरद अरविन्द बोबडे जिन्होंने शुरुवाती दौर में ही इलेक्टोरल बांड्स की याचिका को ख़ारिज कर दिया था, रोहिंग्यास पे फैसला सुनाते हुए कहा था की उन्हें हैरानी होती है की नॉन सिटीजन्स पर आर्टिकल 21 (Right to Life) लागु होता है। जस्टिस बोबडे BJP नेता के बेटे की हार्ले डैविडसन बाइक चलाते हुए दिखे थे। इसके बाद CJI बने जस्टिस UU lalit जो की सुप्रीम कोर्ट जज बनाने के पहले अमित शाह को शोहराबुद्दीन सेख फेक एनकाउंटर केस में रिप्रेजेंट कर चुके थे। DY चंद्रचुद के चीफ जस्टिस बनाने के पहले 4 चीफ जस्टिसस ने सुप्रीम कोर्ट का झुकाव सरकार की तरफ किया था और बहुत सारे फैसले इसी तर्ज पे दिए थे। 

DY चंद्रचूड़ भी अब इसी राह पर चलते हुए दिखे दे रहे है। चंद्रचूड़ ने अभी हाल ही में महाराष्ट्र में एक facilitaion ceremony में बोलते हुए कहा की "अयोध्या मामले के समाधान के लिए वो भगवान के सामने बैठे थे और उन्होंने भगवान से प्रार्थना की थी की इसका समाधान वो निकाले"। चंद्रचूड़ का बयान काफी विवादित मना जा रहा है और इस बयान के बाद जो सवाल उठ रहे है वो सवाल बहुत कठोर है। सवाल ये उठ रहा है की क्या अयोध्या राम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद केस में फैसला क्या आस्था के आधार पर दिया गया था या तथ्यों के आधार पर? 


जब अयोध्या केस में फैसला लिखा गया था तो फैसले पर किसी जज का नाम नहीं लिखा गया था यानि की 5 जजों की बेंच में ये फैसला किसने लिखा था ये नहीं  बताया गया। ये हिंदुस्तान में पहली बार हुआ था की कोई फैसला दिया गया था और जजमेंट पर किसी जज ने साइन ने किया। शायद ये फैसला आस्था के आधार लपर दिया गया था इसी लिए कोई भी जज इस फैसले का क्रेडिट नहीं लेना चाहता था। अयोध्या केस का फैसला 5 जजों की बेंच ने किया था। इस बेंच में जस्टिस राजन गोगोई, शरद अरविन्द बोबडे, DY चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर थे।

रजन गोगोई को रिटायरमेंट के 4 महीने बाद ही राष्ट्रपति द्वारा नॉमिनेट करके राज्य सभा भेज दिया गया। जस्टिस बोबडे को महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी मुंबई और महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी पुणे का चांसलर बना दिया गया। जस्टिस अशोक भूषण को रिटायरमेंट के 4 महीने बाद ही  National Company Law Appellate Tribunal (NCLAT) का चेयरपर्सन बना दिया गया, इनके नियुक्ति को कैबिनेट ने 2021 में मंज़ूरी दे दी थी। और जस्टिस अब्दुल नज़ीर को रिटायरमेंट के एक महीने बाद ही आंध्र प्रदेश का गवर्नर बना दिया गया था। 5 से 4 जज रिटायरमेंट के बाद किसी न किसी पद पर नियुक्त हो गए थे। अब जस्टिस चंद्रचूड़ नवंबर में 10 तारीख को रिटायर हो रहे है। और ऐसा लगता है इनका रिटायरमेंट प्लान भी तैयार है और माईलार्ड भी राज्यसभा जाने या गवर्नर बनने की फ़िराक़ में लग गए है। 

पिछले ही महीने में CJI चंद्रचूड़ अपने निवास पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ गणपति आरती करते हुए नज़र आये थे जिसके फोटोज सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गए थे और CJI सवालों के घेरे में आ गए थे की क्या अब माईलार्ड भी राज्य सभा जाने का सपना देख रहे है और इसकी तैयारी में जुट गए है? इस मामले में CJI की निष्पक्षता पर भी गहरे सवाल उठे थे। 

जबसे DY चंद्रचूड़ CJI बने तबसे लगातार EVM द्वारा चुनाव में धांधली की खबरे आयी और इसके सम्बन्ध में बहुत सारे पेटिशन सुप्रीम कोर्ट में लगाए गए की EVM पर रोक नहीं होती है तो VVPAT और EMV के पर्चियों का 100% मिलान होना चाहिए इन तमाम पिटीशंस को खारिज कर दिया गया और चुनाव आयोग की भूमिका पर जो सवाल लोक सभा चुनाव के दौरान उठे थे की फॉर्म 17 C का डाटा शेयर नहीं किया जा रहा और वेबसाइट पर डाटा अपलोड करने के देर की जा रही थी और बाद में उस डाटा का बदला जा रहा था तब भी सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान नहीं लिया, इन याचिकों पर को सुनवाई नहीं हुयी। पेगासस द्वारा विपक्ष के नेताओं की निगरानी की गयी, इसपे भी सरकार की कोई जीमेदारी कोर्ट द्वारा तय नहीं की गयी। महाराष्ट्र में जिस प्रकार से कानूनी प्रक्रिया को ताक पे रख के महाराष्ट्र में सरकार गिरायी गयी, उसपे भी कुछ फैसला नहीं आया। जम्मू और कश्मीर से पूर्ण राज्य का दर्जा छीन कर उसे एक केंद्र शाषित राज्य बना दिया गया और सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले का सर्थन किया। ये कुछ ऐसे केसेस थे जहाँ माईलार्ड हस्तक्षेप कर सकते थे पर उन्होंने हस्तक्षेप नहीं किया। 

सुप्रीम कोर्ट के जज BR गवई ने CJI चंद्रचूड़ को अपने संवैधानिक पड़ के गरिमा की याद दिला दी। उन्होंने गुजरात के न्यायिक अधिकारियों के एक वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा की "न्यायाधीश का आचरण, पीठ में रहते हुए और पीठ से बाहर, न्यायिक नैतिकता के उच्चतम मानकों के अनुरूप होना चाहिए। अगर कोई न्यायाधीश पद पर रहने के दौरान और शिष्टाचार के दायरे से बाहर जाकर किसी भी नेता या नौकरशाह की तारीफ करता है, तो इससे न्यायपालिका में आम जनता का विश्वास प्रभावित हो सकता है"। यानि की जज चाहे कोर्ट में हो या कोर्ट के बाहर हो पर उसका आचरण जो है वो हमेशा न्याय करने का होना चाहिए।

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