जस्टिस संजीव खन्ना बनेगे मुख्य न्यायाधीश : जजों की नियुक्ति पर कब्ज़ा पाना चाहते है मोदी शाह?
जस्टिस चंद्रचूड़ के रिटायर होने के बाद अब एक बहुत ही विवादित जज चीफ जस्टिस बनाने जा रहे है। एक ऐसा जज जिन्होंने 100% EVM और VVPAT के पर्चियों को मिलाने वाली याचिका खारिज की थी, इन्होने दिल्ली के डिप्टी चीफ मिनिस्टर मनीष सिसोदिया को कथित शराब घोटाला मामले में बेल देने से इंकार कर दिया था। इन्होने BRS की नेता K कविता को बेल देने से मना किया था। एक ऐसा जज जिसको जब सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया तो इस पर जम कर बवाल हुआ था। जब 2019 में जस्टिस संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया था तो 33 जज इनसे एक्सपीरियंस और सीनियर थे। ये हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस भी नहीं रहे थे। आरोप लगा था की कॉलेजियम ने बहुत सारे काबिल और deserving जजों और हाई कोर्ट के तमाम चीफ जस्टिस को दरकिनार करते हुए इन्हे हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट भेजा गया था। बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया ने इस फैसले पर तब घोर विरोध जताया था और कहा था की "यह फैसलाजिन न्यायधीशों को रोका गया है उनके साथ-साथ कई अन्य योग्य वरिष्ठ न्यायाधीशों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों का अपमान है और उनके मनोबल को कम करेगा"। बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया ने कॉलेजियम से यह फैसला वापस लेने को कहा था।
जस्टिस संजीव खन्ना के सुप्रीम कोर्ट भेजे जाने पर दिल्ली हाई कोर्ट के retired जज कैलाश गंभीर ने भी राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को पत्र लिखकर कहा कि कॉलेजियम के फैसले से उच्च न्यायालयों के कई मुख्य न्यायाधीशों सहित 32 सीनियर जजों की “बुद्धि, योग्यता और ईमानदारी” पर संदेह पैदा होता है। इतने सारे काबिल और सीनियर जजों के होते हुए इनको क्यों सुप्रीम कोर्ट भेजा गया, ये भी एक सवाल है।
इनको जब सुप्रीम कोर्ट भेजा गया था तो सुप्रीम कोर्ट जाने की योग्यता इनके पास नहीं थी, और इस मामले पर जम कर बवाल हुआ था।
अब जस्टिस संजीव खन्ना चीफ जस्टिस बनाने वाले है। लोक सभा चुनाव के पहले जब EVM पर इतने सवाल उठ रहे थे, EVM से जुडी हुई धांधली की खबरे तो आती ही रहती है, सुप्रीम कोर्ट में इसी सन्दर्भ में जब एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की तरफ से याचिका दाखिल की गयी की वोटों की गिनती के समय EVM और VVPAT की पर्चियों का 100% मिलान होना चाहिए। इन्होने इस याचिका को ख़ारिज कर दिया था और इलेक्शन कमीशन पर पूरा भरोषा जताया था। लोक सभा चुनाव के दौरान अलग अलग संस्थाओं ने चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल खड़ा किया था।
इस साल जब लोक सभा चुनाव के पहले मुख्य चुनाव आयोग के अपॉइंटमेंट करने वाले कानून में बदलाव किया गया था। पहले मुख्य चुनाव आयोग को नियुक्त करने के लिए प्रधानमत्री, लीडर ऑफ़ अपोजिशन और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश की कमिटी होती थी और फिर इसके सुझाव पर राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आओग की नियुक्ति करते थे पर मोदी सरकार ने इस फैसले को बदल दिया और समिति में मुख्य नयायधीश की जगह एक कैबिनेट मिनिस्टर को शामिल कर लिया गया। इस मामले में जब सुप्रीम कोर्ट में जब याचिका लगायी गयी तब जस्टिस खन्ना ने यह कहा था की हम किसी कानून पर कैसे रोक लगा सकते है? इसी के बाद राजीव कुमार का चयन मुख्य चुनाव आओग के तौर पर हुआ था।
इसके अलावा जब बीजेपी की सरकार ने जब जम्मू और कश्मीर से आर्टिकल 370, जिससे की जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था उसे हटाया था।जब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनती दी गयी थी तो सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा धारा 370 को हटाए जाने का सर्थन किया था और उस फैसले को सही ठहराया था। जिस बेँच ने ये फैसला सुनाया था जस्टिस खन्ना उस बेँच का हिस्सा थे।
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